सुभाष चन्द्र कुशवाहा
सूफ़ीमत पर वेदान्त एवं बौद्ध धर्म के प्रभाव को यूरोपीय समीक्षकों ने भी स्वीकार किया है । फ्रांसीसी विद्वान डोजी, होपेनहावर गोल्डजिहर ह्यूगेस तथा सर विलियम जोन्स आदि का ऐसा ही मत है7। लेकिन निकोल्सन, ब्राउन का मत है कि सूफ़ीमत मूलतः यूनानी नव अफलातूनी दर्शन से प्रभावित है तथा इस पर कुछ नास्टिक, मानी एवं बौद्ध धर्म के भी प्रभाव हैं। इन मतांतर का कारण यह हो सकता है कि सातवीं सदी तक सूफ़ी मत की कोई विशिष्ट मान्यता या चिंतन धारा न थी। केवल सन्यासपूर्ण विरक्त जीवन, आत्मचिंतन, भगवतप्रेम तथा तल्लीनता का प्राधान्य था। इसमें उत्तरोतर विकास हुआ और आगे जाकर नवीं सदी से लेकर परवर्ती सूफि़यों की चिंतन धाराओं पर हिन्दू और बौद्ध धर्म का प्रभाव पड़ा । ऐसा स्वाभाविक ही था । क्योंकि अरब से भारत के संबंध बहुत पुराने समय से रहे हैं। अंक ज्ञान को भारत से ग्रहण करने के कारण ही वे इसे हिन्दसा कहते हैं। कालगणना भी उन्होंने भारत से ही सीखी थी।
सत्ता संघर्ष और रक्तपात ने भी मनुष्य को सूफ़ीवाद की ओर ढकेलने का काम किया । आठवीं सदी से लेकर नवीं सदी तक लगातार अरब राष्ट्रों में सत्ता संघर्ष हुए। इस प्रकार सत्ता युद्ध कलह एवं रक्तपात से मन हटाकर आत्मलीन होने या धूनी रमाकर ध्यानमग्न होने, माला फेरने की संस्कृति सूफ़ीमत के रूप में सामने आई। सूफी़मत ने बहुत हद तक इस्लाम को लोकप्रिय बनाने, उसे फैलाने में मदद पहुंचाई । इस्लामी साम्राज्य के पूर्वी उपनिवेश-खोरासान, अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, सीस्तान, धर्म परिवर्तन के पूर्व हिन्दू या बौद्ध थे । इसलिये सूफ़ीमत पर इन धर्मों का प्रभाव स्वाभाविक है। सूफि़यों ने हिन्दू चिंतनधारा से प्रत्यक्ष रूप से तथा बौद्ध धर्म से परोक्ष रूप में विचार ग्रहण किए। ‘निर्वाण‘ या ‘मोक्ष‘ की भांति ‘फना‘ की भावना, त्याग एवं सन्यासपूर्ण जीवन विधि, जपमाला आदि, भारतीय साधना से लिया। भगवान बुद्ध के जीवन कथाओं को सूफ़ी संतों के जीवन के साथ जोड़कर बताया जाने लगा ।
भारतीय उपमहाद्वीप में सूफ़ीवाद को इस्लामी धर्माेत्थान का सबसे बड़ा आंदोलन कहा जा सकता है। सूफ़ीमत ने सीमाओं के परे एवं धर्म विभाजन की रेखाओं को तोड़ते हुए सभी प्रकार के लोगों को आकर्षित किया। भारत में सूफ़ीवाद इस्लाम और हिन्दू धर्म के सम्मिश्रण की कड़ी बनी। यद्यपि सूफ़ीवाद के मूलभूत सिद्धांत, दर्शन एवं पीठिका की खोज असंभव है तथापि सूफ़ी संतों के महान उद्देश्य विभिन्न चमत्कारिक कथाओं में मिल जाते हैं। वे सूफ़ी संत, जिनके आचरण और व्यवहार ने लोगों के मन मोह लिए, मुसलमानों में ही नहीं, हिन्दुओं में भी इस्लाम के प्रति विश्वसनीयता उत्पन्न कर सर्व धर्म समभाव के पुष्प उपजाए, मानवीय मरूस्थलों को हरा-भरा कर इंसानियत के उपवन लगाये, उनके विचार ही आगे चलकर सूफ़ीवाद के सिद्धान्त बने। यह और बात है कि उनके श्रद्धालुओं ने चमत्कारपूर्ण कथाओं द्वारा उन्हें मानवीय स्वभाव से हटाकर पारलौकिक प्राणी बना दिया। उनका कार्यक्षेत्र इतना व्यापक बना दिया कि प्रकृति के कई विधान उनके सामने गौण नज़र आने लगे। सूफ़ी संत ज्ञानेन्द्रियों, कर्मेन्द्रियों और पंचभूतों पर अपनी स्वतंत्र सत्ता सिद्ध करते रहे। परिणामस्वरूप सूफ़ीवाद के लोक व्यावहारिक दर्शन मज़ारों, कुल, उर्स, संदल, नज्र-नियाज़, चढ़ावे और कव्वालियों में देखने को मिलने लगे .
सत्ता संघर्ष और रक्तपात ने भी मनुष्य को सूफ़ीवाद की ओर ढकेलने का काम किया । आठवीं सदी से लेकर नवीं सदी तक लगातार अरब राष्ट्रों में सत्ता संघर्ष हुए। इस प्रकार सत्ता युद्ध कलह एवं रक्तपात से मन हटाकर आत्मलीन होने या धूनी रमाकर ध्यानमग्न होने, माला फेरने की संस्कृति सूफ़ीमत के रूप में सामने आई। सूफी़मत ने बहुत हद तक इस्लाम को लोकप्रिय बनाने, उसे फैलाने में मदद पहुंचाई । इस्लामी साम्राज्य के पूर्वी उपनिवेश-खोरासान, अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, सीस्तान, धर्म परिवर्तन के पूर्व हिन्दू या बौद्ध थे । इसलिये सूफ़ीमत पर इन धर्मों का प्रभाव स्वाभाविक है। सूफि़यों ने हिन्दू चिंतनधारा से प्रत्यक्ष रूप से तथा बौद्ध धर्म से परोक्ष रूप में विचार ग्रहण किए। ‘निर्वाण‘ या ‘मोक्ष‘ की भांति ‘फना‘ की भावना, त्याग एवं सन्यासपूर्ण जीवन विधि, जपमाला आदि, भारतीय साधना से लिया। भगवान बुद्ध के जीवन कथाओं को सूफ़ी संतों के जीवन के साथ जोड़कर बताया जाने लगा ।
भारतीय उपमहाद्वीप में सूफ़ीवाद को इस्लामी धर्माेत्थान का सबसे बड़ा आंदोलन कहा जा सकता है। सूफ़ीमत ने सीमाओं के परे एवं धर्म विभाजन की रेखाओं को तोड़ते हुए सभी प्रकार के लोगों को आकर्षित किया। भारत में सूफ़ीवाद इस्लाम और हिन्दू धर्म के सम्मिश्रण की कड़ी बनी। यद्यपि सूफ़ीवाद के मूलभूत सिद्धांत, दर्शन एवं पीठिका की खोज असंभव है तथापि सूफ़ी संतों के महान उद्देश्य विभिन्न चमत्कारिक कथाओं में मिल जाते हैं। वे सूफ़ी संत, जिनके आचरण और व्यवहार ने लोगों के मन मोह लिए, मुसलमानों में ही नहीं, हिन्दुओं में भी इस्लाम के प्रति विश्वसनीयता उत्पन्न कर सर्व धर्म समभाव के पुष्प उपजाए, मानवीय मरूस्थलों को हरा-भरा कर इंसानियत के उपवन लगाये, उनके विचार ही आगे चलकर सूफ़ीवाद के सिद्धान्त बने। यह और बात है कि उनके श्रद्धालुओं ने चमत्कारपूर्ण कथाओं द्वारा उन्हें मानवीय स्वभाव से हटाकर पारलौकिक प्राणी बना दिया। उनका कार्यक्षेत्र इतना व्यापक बना दिया कि प्रकृति के कई विधान उनके सामने गौण नज़र आने लगे। सूफ़ी संत ज्ञानेन्द्रियों, कर्मेन्द्रियों और पंचभूतों पर अपनी स्वतंत्र सत्ता सिद्ध करते रहे। परिणामस्वरूप सूफ़ीवाद के लोक व्यावहारिक दर्शन मज़ारों, कुल, उर्स, संदल, नज्र-नियाज़, चढ़ावे और कव्वालियों में देखने को मिलने लगे .