आज राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय ,गाजीपुर के हिंदी-परिषद् की ओर से 'कविता : पाठ एवं समीक्षा' कार्यक्रम के अंतर्गत दिल्ली से आए जनसत्ता के वरिष्ठ सम्पादक एवं कवि राजेन्द्र राजन ने लगभग अपनी दस कविताओं का पाठ किया . इस अवसर पर उनहोंने 'पेड़' ,'हत्यारे','इतिहास में जगह',बामियान में बुद्ध','विजेता की प्रतीक्षा में','बुद्धिजीवी','बहस में अपराजेय','विकास' , 'नयायुग', 'ताकत बनाम आजादी' तथा 'पुछल्ला बल्लेबाज' आदिकविताओं काआकर्षक पाठ किया. कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रसिद्ध समालोचक डॉ०पी.एन.सिंह नें राजेंद्र राजन की कविताओं को सुनना एक अविस्मरणीय एवं मर्मस्पर्शी अनुभव बताया. उन्होंने कहा कि राजन की सभी कविताएँ बेहद अच्छी हैं और सही मनुष्यता की पहचान सौंपती हैं. अच्छे और संवेदनशील मनुष्य के मन की कलात्मक प्रस्तुति करती उनकी कविताएँ गंभीर प्रभाव छोड़ती हैं. अपनें समीक्षक वक्तव्य में उपन्यासकार रामावतार नें कहा कि मनुष्य सर्वोत्तम प्राणी है और मनुष्यता सबसे बड़ा धर्म. राजेंद्र राजन की कविताएँ मनुष्यता का यही सन्देश सौंपती हैं. राजकीय महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. अनिल कुमार तिवारी नें राजेंद्र राजन को मुक्तिबोध के पथ का पथिक कवि कहा .उन्होंने कहा कि राजेंद्र राजन के पास बहुत ही स्वच्छ और परिष्कृति सामाजिक दृष्टि है . इस अवसर पर भूगोल प्राध्यापक संतन कुमार ने अपनी आशु रचित कविता भी सुनाई . हिंदी-परिषद् के संयोजक डॉ.रामप्रकाश कुशवाहा नें उन्हें अज्ञेय द्वारा प्रशंसित समर्थ कवि बताया.
राजेन्द्र राजन (वाराणसी के एवं दिल्ली प्रवासी ) की कविताएँ मुझे क्यों प्रिय हैं जब इसके कारणों पर विचार करता हूँ तो मुझे कई कारण दिखाई पड़ते हैं .सबसे बड़ी बात यह है कि वे अपरिहार्य अभिव्यक्ति के कवि हैं .उनकी कविताएँ एक मितभाषी व्यक्ति की कविताएँ हैं .एक ऐसे कवि-व्यक्ति की कविताएँ हैं जो अनावश्यक कुछ भी बोलना पसंद नहीं करता .या बोलता भी है तो बोलने की सार्थकता के तलाश में धैर्य की अंतिम सीमा तक चुप रहता है .लेकिन यह चुप्पी अज्ञेय का आभिजात्य मौन नहीं है बल्कि देशज-प्रकृत मनुष्य की वह सहज स्वाभाविक संवेदनशील और शिष्ट चुप्पी है जो बहुत-कुछ बुरा लगनें के बावजूद अपने क्षोभ और बोध को किसी निर्वैयक्तिक निष्कर्ष तक पहुँचने और पहुँचाने के लिए बचाए रखना चाहता है .इस तरह उनकी कविताओं पर मेरा दूसरा महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह है कि वे वैयक्तिक समस्याओं का भी निर्वैयक्तिक समाधान और परिणति चाहती हैं .राजेंद्र राजन के पास समाज रूपी समुद्र में उठने वाली एक-एक लहरों की तीव्रता और चरित्र दर्ज है .उनकी कविताएँ तथाकथित इतिहास-निर्माता संगठनों के नासमझ भीड़-विवेक और चरित्र को बार-बार प्रश्नांकित करती हैं .उनके स्वार्थों और उनके दावों की पोल खोलती तथा उन्हें बेनकाब करती हैं .
राजेंद्र राजन की कविताओं में उपस्थिति विशेषता सामान्य मनुष्य की ओर से उसके पक्ष और उसकी मुद्रा में प्रस्तुत जीवन और समाज का असामान्य या विशेष है .उनकी कविताओं में आत्मानुभूति का जो शिल्प मिलता है वह इसलिए इतना अनूठा ,विरल और विश्वसनीय है कि वह उनके जिए और हुए का ही सृजनात्मक रूपांतरण है .उनके कवि व्यक्तित्व का ही काव्यात्मक विस्तार है .वे अपनी कविताओं को सजग रूप से पेशेवर कलात्मक उत्पाद बनाने से बचाते दिखते हैं तो इसका रहस्य बाजार की भीड़ संवेदना की पहचान और उसके दुहराव की निरर्थकता से बचने की उनके रचनाकार की सजगता में है .
कल रविवार २ अक्टूबर को ४ बजे अपरान्ह से तुलसी पुस्तकालय भदैनी में आयोजित अपने प्रिय कवि के एकल काव्यपाठ में आप सभी सुधी मित्र एवं श्रेष्ठ -जन सादर आमंत्रित हैं .
राजेन्द्र राजन (वाराणसी के एवं दिल्ली प्रवासी ) की कविताएँ मुझे क्यों प्रिय हैं जब इसके कारणों पर विचार करता हूँ तो मुझे कई कारण दिखाई पड़ते हैं .सबसे बड़ी बात यह है कि वे अपरिहार्य अभिव्यक्ति के कवि हैं .उनकी कविताएँ एक मितभाषी व्यक्ति की कविताएँ हैं .एक ऐसे कवि-व्यक्ति की कविताएँ हैं जो अनावश्यक कुछ भी बोलना पसंद नहीं करता .या बोलता भी है तो बोलने की सार्थकता के तलाश में धैर्य की अंतिम सीमा तक चुप रहता है .लेकिन यह चुप्पी अज्ञेय का आभिजात्य मौन नहीं है बल्कि देशज-प्रकृत मनुष्य की वह सहज स्वाभाविक संवेदनशील और शिष्ट चुप्पी है जो बहुत-कुछ बुरा लगनें के बावजूद अपने क्षोभ और बोध को किसी निर्वैयक्तिक निष्कर्ष तक पहुँचने और पहुँचाने के लिए बचाए रखना चाहता है .इस तरह उनकी कविताओं पर मेरा दूसरा महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह है कि वे वैयक्तिक समस्याओं का भी निर्वैयक्तिक समाधान और परिणति चाहती हैं .राजेंद्र राजन के पास समाज रूपी समुद्र में उठने वाली एक-एक लहरों की तीव्रता और चरित्र दर्ज है .उनकी कविताएँ तथाकथित इतिहास-निर्माता संगठनों के नासमझ भीड़-विवेक और चरित्र को बार-बार प्रश्नांकित करती हैं .उनके स्वार्थों और उनके दावों की पोल खोलती तथा उन्हें बेनकाब करती हैं .
राजेंद्र राजन की कविताओं में उपस्थिति विशेषता सामान्य मनुष्य की ओर से उसके पक्ष और उसकी मुद्रा में प्रस्तुत जीवन और समाज का असामान्य या विशेष है .उनकी कविताओं में आत्मानुभूति का जो शिल्प मिलता है वह इसलिए इतना अनूठा ,विरल और विश्वसनीय है कि वह उनके जिए और हुए का ही सृजनात्मक रूपांतरण है .उनके कवि व्यक्तित्व का ही काव्यात्मक विस्तार है .वे अपनी कविताओं को सजग रूप से पेशेवर कलात्मक उत्पाद बनाने से बचाते दिखते हैं तो इसका रहस्य बाजार की भीड़ संवेदना की पहचान और उसके दुहराव की निरर्थकता से बचने की उनके रचनाकार की सजगता में है .
कल रविवार २ अक्टूबर को ४ बजे अपरान्ह से तुलसी पुस्तकालय भदैनी में आयोजित अपने प्रिय कवि के एकल काव्यपाठ में आप सभी सुधी मित्र एवं श्रेष्ठ -जन सादर आमंत्रित हैं .
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