वे......जो पूरी तरह स्वतन्त्र हो गए हैं
अपने कर्मों का बबूल-बीज छींटते हुए .....
अभी ऋतू नहीं आयी बरसात की
कब तक उगनी है काँटों की फसल
आज,कल या फिर वर्षों बाद
कब तक चुभनी है काँटों की फसल !
यह खुनी जंगल उन लोगों नें पैदा किया था
जो पूरी तरह निश्चिन्त थे
कि अब उन्हें
इन रौंदी हुई पगाडंडियों से
कभी भी वापस नहीं लौटना है ....
वे जो पूरी तरह निश्चिन्त थे
हाँ वे ही ...वे ही .....वे ही
अपनी अगली पीढ़ियों का
बहता हुआ लहू मांगने के लिए
काँटों का हरा-भरा जंगल छोड़ गए हैं
हाँ वे ...जो पूरी तरह निश्चिन्त थे.
अपने कर्मों का बबूल-बीज छींटते हुए .....
अभी ऋतू नहीं आयी बरसात की
कब तक उगनी है काँटों की फसल
आज,कल या फिर वर्षों बाद
कब तक चुभनी है काँटों की फसल !
यह खुनी जंगल उन लोगों नें पैदा किया था
जो पूरी तरह निश्चिन्त थे
कि अब उन्हें
इन रौंदी हुई पगाडंडियों से
कभी भी वापस नहीं लौटना है ....
वे जो पूरी तरह निश्चिन्त थे
हाँ वे ही ...वे ही .....वे ही
अपनी अगली पीढ़ियों का
बहता हुआ लहू मांगने के लिए
काँटों का हरा-भरा जंगल छोड़ गए हैं
हाँ वे ...जो पूरी तरह निश्चिन्त थे.
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