Sunday, 31 July 2016

हम चाहते हैं...

तुम्हारे जिए और दिए हुए सच
हमारे प्रश्नों से घायल हो चुके हैं
हम तुम्हारी गलतियों-मूर्खताओं को वैसे ही जानते हैं
जैसे आने वाली पीढ़ियाॅं जानेंगी हमारी मूर्खताओं को......
हम तुम्हारी दी हुई निष्ठाओं से छले गए हैं
हम घर से बेघर समय से असमय हुए हैं
तुम्हारी दी हुई दाढ़ियाॅं नोच डालने की हद तक
खुजली पैदा करती हैं हमें लहूलुहान करती हुई.....
हम नहीं चाहते कि हमारा नाम
तुम्हारी बनाई हुई जातियों के ईमानदार कुली के रूप में लिखा जाए...
हम अपने वंशजों को अपना भारवाहक बनाने वाली
तुम्हारी हिंसक परम्परा के खिलाफ हैं
हमें नहीं चाहिए आदमी की खाल उधेड़कर
उसके लहू में डुबोकर लिखे गए तुम्हारे सनातन दिव्य ग्रन्थ.....
हम तुम्हारी सभी को मारकर जीने वाली अमरता के खिलाफ हैं
तुम्हारा हमारे समय पर लदकर बलात् जीवित रहना
एक अप्राकृतिक अपराध है
हम न्याय चाहते हैं.....हम तुम्हारी मृत्यु चाहते हैं पितामह!
हम चाहते हैं कि आने वाली पीढ़ियों को भी
नयी सभ्यता के लिए अपना नया पितामह चुनने का अधिकार मिले
बताओ ! तुम्हारी मृत्यु कैसे होगी ?

रामप्रकाश कुशवाहा

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