Tuesday, 5 July 2016

इस्लामी आतंकवाद का सामजिक कारण

अधिकांश लोग यह समझते हैं कि इस्लामी आतंकवाद की समस्या का केवल मजहबी चेहरा ही है जबकि मैं उसे धार्मिक नहीं बल्कि संस्कृतिक और सामाजिक भी मानता हूँ.परंपरा के प्रति अपनी ईमानदार सामूहिक वफ़ादारी के कारण आधुनिकता से समायोजन में असमर्थ विश्व का बड़ा जन-समुदाय अपने व्यवहार से मध्ययुगीन मानवीय पर्यावरण की पुनर्सृष्टि करने लगता है.वह सिर्फ विचारधारा के कारण ही आतंकवादी नहीं बनता बल्कि इसलिए भी कि मुसलमान युवक अन्य मतावलंबी युवकों की तुलना में यौन-यातना (इन युवको को उनमें प्रचलित खतना प्रथा के कारण भी कुछ असामान्य उत्तेजनाओं से गुजरना पड़ता है.न्यूरो विटामिनों का उचित पोषण नहीं मिला तो उनमें से अधिकांश चिडचिडे और मनोरोगी हो जाते हैं' यौन-यातना से मेरा आशय यह भी है.जिसे मैं खुलकर लिखना नहीं चाहता था. सरकार को चाहिए कि मुसलमानों में विटामिन बी की आपूर्ति मुफ्त करे) एवं प्रेम यातना के अधिक शिकार होते हैं.एक ही माता की सहोदर संतानों में विवाह वर्जित होने के बावजूद अपने ही कुटुंब में हीे विवाह होना संभव होने के कारण मुस्लिम युवक बचपनके बाद कम उम्र से ही अपने ही परिवार में अपनी जीवन - संगिनी ढूँढ़ने का प्रयास करने लगते हैं.दूसरी ओर परदा प्रथा के कारण चाचियाँ और मौसियाँ भी कमर कस कर लड़कियों की निगरानी में लग जाती हैं कि नालायक किसी तरह सफल नहीं हो पाए. इस द्वंद्व-युद्ध में हारेे हुए एवं प्रेम में घायल लडके आत्महत्या करने के लिए आतंकवादी बनने निकल जाते हैं. एक अन्य कारण यह है कि अंग्रेजी शिक्षा के ज़माने में मदरसों में धार्मिक शिक्षा ग्रहण करने वाले लडके एक दिन पाते हैं कि विवाह की मंडी में उनकी तो कोई पूछ ही नहीं है.उनके पास निराश होकर आतंकावाद्दी बनकर बन्दूक के बल पर लड़कियों का अपहरण करने का ही एक मात्र रास्ता बचता है.इस्लाम में जिहाद की संस्कृतिक अवधारणा उसके व्यर्थता-बोध को सिर्फ प्लेट फार्म ही उपलब्ध करता है . यह जातीय या कौमी धरातल पर शहादत को महिमा-मंडित करने जैसा है. आधुनिकता के परिवर्तनों से गुजर रहा मुस्लिम समाज अपनी वैयक्तिक और सामुदायिक कुंठा को ऐसी ही हत्याओं द्वारा दूरकरना चाहता है. ऐसा अरब आदि में देखने को मिलता है और पाकिस्तान तथा भारत में भी. अन्य समुदायों में दूर शादी होने की प्रथा के कारण या फिर खुलेपन वाले पश्चिमी समुदायों में ऐसी कुंठा नहीं होने से युवक आतंकवादी कम बनते हैं.उनकी इस कुंठा का खामियाजा अन्य समुदाय की युवतियों को उठाना पड़ता है. कठोर वर्जनाओं में पालने के कारण खुलेपन में जीती हुई दुनिया की अधिकांश स्त्रियों को खलनायिका के रूप में देखते हैं अभी-अभी बंगलादेश में आतंकी हमले में मारी गयी तारिषीी की हत्या के पीछे भी ऐसा घृणा-भाव हो सकता है. शिक्षाके कम स्तर के कारण भीं धनोपार्जन के बाद ऐसे युवक चौराहों पर युवतियों को घूरनें और छींटाकसी करते देखे जा सकते हैं.

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