Thursday, 22 September 2016

विचारणीय प्रश्न

 कोई जनसँख्या यदि अलग ढंग से जीने की जिद करती है तो उसे अलग राष्ट्र चाहिए .पाकिस्तान बनाने की मांग इसलिए मान ली गयी थी कि उस मांग को पूरा करने वाली ब्रिटिश सत्ता की यह अपनी मातृभूमि नहीं थी.उन्हें लूटा हुआ ही मुफ्त में बांटना था. हुर्रियत आदि मुस्लिम काश्मीरी इस बात को नहीं समझ पा रहे हैं कि इस बार वे भारतीय जनता से सांप्रदायिक आधार पर उसकी मातृभूमि ही मांग रहे हैं आतंकवादी हिंसा का सहारा लेने पर .सत्ता को भी फासिस्ट शैली के बल-प्रयोग का बहाना मिलेगा . किसी भी पक्ष के उन्माद की स्थिति में इससे घातक परिणाम निकल सकते हैं.पडोसी को भी समझना चाहिए कि अब और पाकिस्तान बनना संभव नहीं .

 एक विचारणीय प्रश्न यह भी है कि क्या इस्लामी कौम बढ़ती जनसँख्या को कम करने में आधुनिक उपाय नसबंदी आदि का इश्तेमाल करने के स्थान पर जेहादी हत्या और आत्महत्या को ही जायज ठहराएगी ? जब जन्म दर अनावश्यक रूप से अधिक होगा और जीवन कठिन होगा तो स्वाभाविक है कि बढ़ते तनाव के साथ हत्या और आत्महत्या की घटनाएँ भी बढ़ेंगी .यह भीएक कारण हो सकता है जो वैश्विकस्तर पर इस्लाम केअनुयायी जहाँ देखो वहीँ मरने के लिए मारने चल दे रहे हैं.उनके उन्माद को दूसरे समुदायों को भी भुगतना पड़ रहा है. इस्लामी देश यदि जनसँख्या -नियंत्रण के आधुनिक वैज्ञानिक उपाय नहीं अपनाएँगे तो कुदरत विवश होकर उनके धर्म-ग्रन्थ में दिए गए क़यामत के दिन लाएगी.उनके इतिहास-प्रवाह का निर्णय उनके हाथ से निकलकर प्रकृति के हाथों में चला जाएगा . उनके इतिहास का चक्र भी प्राचीन काल जैसी तनावपूर्ण स्थितियों में जा सकता है. नसबंदी विहीन प्राचीन प्राचीन काल में तो भारतीय नायक श्रीकृष्ण नें इस नुस्खे को अपने कुल पर ही आजमा दिया था-धरती का भार कम करने के नाम पर .
निरंकुश बढ़ती जनसंख्या के कारण कहीं वैसी ही आदिम नियति का सामना आतंकवाद के निर्यातक देश तो अपने अचेतन में नहीं कर रहे हैं ? आसान वैज्ञानिक विधियाँ छोड़कर जनसँख्या -नियोजन का इतना हिंसक और क्रूर आदिम तरीका ! अधिक सुरक्षित आधुनिक वैज्ञानिक विधियों के होते हुए भी ! कहीं पाकिस्तान,बंगलादेश और अन्य इस्लामी देशों के भी आतंकवादी राष्ट्र बनने का अचेतन रहस्य वहां की परिवार-नियोजन विहीन अनियंत्रित जनसँख्या वृद्धि में ही छिपा तो नहीं है !

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