पाठक को लोकतान्त्रिक नजरिए से आलोचक की एकछत्र सत्ता से मुक्ति तथा सम्मान-भाव दिलाने के लिए ही मैंने १९८९ में प्रकाशित अपनी इस पुस्तक का नाम 'दूसरा पाठकनामा' रखा था .भारतीय मध्यवर्ग और उसके बुद्धिजीवियों की संख्या आजादी के पहले जितनी कम थी ,निरक्षरों और अपढ़ों की भारी संख्या को देखते हुए गिने-चुने बुद्धिजीवियों का नेता हो जाना स्वाभाविक ही था .जिस तरह पांच-सात वकालत पढ़ने वाले राजनीतिक इतिहास में दर्ज हुए वैसे ही पाठक और लेखक के बीच बौद्धिक अंतर को देखते हुए आलोचक के रूप में साहित्यिक विशेषज्ञ का समादृत होना स्वाभाविक ही था .आलोचना और आलोचक की सत्ता का उत्थान और पतन का सम्बन्ध मध्यवर्ग और उसके बुद्धिजीवियों के विकास से भी है .आज एक साथ अच्छा लिखने पर भी वह प्रतिष्ठा नहीं प्राप्त कर पा रहे हैं जो सीमित जनसंख्या वाले समय में कभी पूर्ववर्तियों को प्राप्त थी .सच तो यह है कि उस समय तक रचनाओं को समझाने-समझाने के लिए आलोचक के मध्यस्थता की कोई विशेष आवश्यकता नहीं रह गयी थी .आलोचक का काम राजनीतिक प्रतिबद्धता के आधार पर कृति से अधिक कृतिकार की निष्ठा की परखा कर उसके अनुकूल या प्रतिकूल ,समर्थक या विरोधी होने का साहित्यिक फतवा जारी करना रह गया था .इसके बावजूद आलोचना के डॉ पेशेवर मंचों को बाजार नें संरक्षित और प्रोत्साहित किया था -पहला साहित्यिक पत्रिकाओं में सृजनात्मक आलोचना और समीक्षा का था तो दूसरा शैक्षणिक आलोचना का -जो कक्षाओं में साहित्य को कैसे पढ़ाया जाए इस समस्या के समाधान से सम्बंधित था .
दूसरा पाठकनामा से पूर्ववर्ती पाण्डुलिपि ' पाठकनामा' की थी जिसको सैद्धांतिक अवधारणाओं की पहली पुस्तक होना था ,जो कुछ मेरे आलस्य और कुछ अन्य जरुरी चिंतन की ओर अग्रसर हो जाने के कारण पाण्डुलिपि के रूप में अप्रकाशित ही पड़ी रही .अब वही पुस्तक ''रचना का चौथा आयाम '' नाम से प्रतिश्रुति प्रकाशन कोलकाता से प्रकाशित होने जा रही है . .फिलहाल उस समय दूसरा पाठकनामा की ही अच्छी समीक्षाओं नें जिनमें से जनसत्ता में सुरेश शर्मा द्वारा लिखित समीक्षा का प्रकाशन भी शामिल है .बाबरनामा की तर्ज पर रखे गए इस नाम नें लोगों को इतना प्रभावित किया था कि आज पाठकों के पत्र स्तम्भ के लिए 'पाठकनामा नाम हिंदी साहित्य में सर्वस्वीकृत सा हो गया है . दैनिक जागरण ,शुक्रवार के पाठकनामा स्तंभों के अतिरिक्त मैंने इंटर नेट पर पाठकनामा नाम से ब्लाग भी देखा है .मैं इस शब्द के माध्यम से हिंदी-साहित्य में पाठकीय लोकतंत्र का प्रसार करने वाले सभी सम्बंधितों को इसके लिए साधुवाद- धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ
दूसरा पाठकनामा से पूर्ववर्ती पाण्डुलिपि ' पाठकनामा' की थी जिसको सैद्धांतिक अवधारणाओं की पहली पुस्तक होना था ,जो कुछ मेरे आलस्य और कुछ अन्य जरुरी चिंतन की ओर अग्रसर हो जाने के कारण पाण्डुलिपि के रूप में अप्रकाशित ही पड़ी रही .अब वही पुस्तक ''रचना का चौथा आयाम '' नाम से प्रतिश्रुति प्रकाशन कोलकाता से प्रकाशित होने जा रही है . .फिलहाल उस समय दूसरा पाठकनामा की ही अच्छी समीक्षाओं नें जिनमें से जनसत्ता में सुरेश शर्मा द्वारा लिखित समीक्षा का प्रकाशन भी शामिल है .बाबरनामा की तर्ज पर रखे गए इस नाम नें लोगों को इतना प्रभावित किया था कि आज पाठकों के पत्र स्तम्भ के लिए 'पाठकनामा नाम हिंदी साहित्य में सर्वस्वीकृत सा हो गया है . दैनिक जागरण ,शुक्रवार के पाठकनामा स्तंभों के अतिरिक्त मैंने इंटर नेट पर पाठकनामा नाम से ब्लाग भी देखा है .मैं इस शब्द के माध्यम से हिंदी-साहित्य में पाठकीय लोकतंत्र का प्रसार करने वाले सभी सम्बंधितों को इसके लिए साधुवाद- धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ