Saturday, 25 June 2016

ज्ञानी बनने का रहस्य

डॉ.दीपा सिंह 


मनुष्य एक दीर्घ जीवी प्राणी है .उससे अधिक लम्बी उम्र प्रकृति नें समुद्री कछुओं को ही दी है .अधिक आयु  वाला जीवन पाने के कारण न सिर्फ  मानव जीवन का बचपन बल्कि वृद्धावस्था भी अन्य जीवों की तुलना में काफी लंबी होती  है . यही कारण है कि बच्चो और वृद्धों की सेवा और देखरेख को प्रायः सभी संस्कृतियाँ बहुत ही महत्त्व देती हैं .इसे धार्मिक कर्त्तव्य माना जाता  है .
           बचपन में प्रकृति नें हम सभी को प्रबल स्नृति का उपहार  दिया  है .इस आयु में सोचने-विचरने की क्षमता उतनी विकसित  नहीं होती  जितनी कि सिर्फ याद रखने की .देखा  जाता  है कि जानवरों के बच्चे भी अपनी प्रजाति के अन्य जानवरों के बीच अपनी माँ  को भीड़ के बीच भी न सिर्फ पहचान लेते हैं बल्कि उनकी सूक्ष्म विशेषताएँ भी याद रखते हैं . यही प्रकृति-प्रदत्त गुण अपने परिवेश की चुनौतियों के प्रति भी उन्हें सजग बनाता है .
            हमारा  शिक्षा ग्रहण करना भी स्मृति-निर्माण की बड़ी परियोजना की तरह है .अपने पिछले ज्ञान और अनुभव से अर्जित समझदारी के आधार पर ही हम नए ज्ञान की समझदारी विक्सित करते हैं .यह एक श्रृंखलाबद्ध  प्रक्रिया है .कुछ-कुछ वैसा ही जैसे हम नीव बनाए बिना ऊपर की दीवार नहीं खड़ी कर सकते 
                इसमें से कुछ को तो हम परिश्रम जिज्ञासा और ध्यान के आधार पर विकसित  करते हैं और कुछ को अपने भीतर साथ-साथ चलने वाली .जैविक प्रक्रियाओं के आधार पर . जीव वैज्ञानिकों नें पाया है कि हमारी स्मृति के निर्माण में मस्तिष्क के निचले भाग में स्थित हायपोथैल्मस  नमक अंग की महत्वपूर्ण भूमिका होती है .हम जब भी कुछ नया याद रखना चाहते हैं या किसी नए अनुभव से गुजरते हैं  तो हायपोथैल्मस को उस स्मृति के संरक्षण के लिए जगह बनाने हेतु भौतिक रूप से भी बड़ा होना पड़ता  है . यह प्रक्रिया कम्प्यूटर में बिलकुल नया मेमोरी कार्ड लगवाने जैसी ही है . इस लिए बच्चों  ! हमें  पहले से जीरो होते हुए भी ज्ञान के क्षेत्र में हीरो  बनने के लिए चुपचाप पढ़ते रहना चाहिए .आगे का काम प्रकृति स्वयं कर देती है .हम जब अपने परिश्रम ,यातना और अभ्यास से अपने मस्तिष्क को नयी स्मृति बनाने का आदेश देंगे तभी वह हमारे लिए कुछ नया कर सकेगी .इस लिए निरंतर परिश्रमपूर्वक अभ्यास ही भविष्य का ज्ञानी बनने बनाने का रहस्य है .यद्यपि बहुत तनाव ठीक नहीं है लेकिन पढ़ाने से मस्तिष्क की तार्किक क्षमता तो बढ़ती ही है  किसी  नयी समस्या को सुलझाने  की हमारी मानसिक शक्ति भी बढ़ती है ..वैज्ञानिकों के अनुसार ऐसा मस्तिष्क में भूरा द्रव्य और विद्युत् का स्तर बढ़ने  से होता  है .प्रशिक्षित मस्तिष्क अप्रशिक्षित और आलसी मस्तिष्क की तुलना में अधिक योग्य और समर्थ होता  है .इस तरह सिर्फ अच्चा अंक पाने के लिए ही नहीं बल्कि बुद्धिमान मनुष्य होने के लिए भी निरंतर पढ़ना लाभप्रद है .


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