Saturday, 25 June 2016

६७वा गणतंत्र दिवस

            डॉ.दीपा सिंह 

अभी -अभी हमारे राष्ट्र नें अपना ६७ वां राष्ट्रीय पर्व गणतंत्र दिवस मनाया है। १९५० में आज ही के दिन १९४७ में अंग्रेजों की अधीनता से मुक्त होने के लगभग तीन वर्ष बाद हमारे देश नें अपना नया संविधान अंगीकार या आत्मार्पित किया था। २६  जनवरी को इसलिए चुना गया था क्योंकि १९३० में इसी दिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भारत को पूर्ण स्वराज घोषित किया था। २६  नवम्बर १९४९ को भारतीय संविधान सभा द्वारा इस संविधान को अपनाये जाने के बाद २६ जनवरी १९५० को इसे एक लोकतांत्रिक शासन प्रणाली के साथ राष्ट्र पर लागू किया गया था। संविधान का पहला ही वाक्य है 'हम भारत के लोग.'
         हम जितने भी पर्व या उत्सव मानते हैं ,उनमें अधिकांश पुराने ज़माने के हैं ,जिन्हे अलग-अलग जाति -धर्म के लोगों ने अपनी जाती या धर्म के लोगों पर लागू किया था। प्रायः देखा जाता है कि लोग जितने मन से अपने धार्मिक पर्व मानते हैं ,उतने मनोयोग से अपने राष्ट्रीय पर्वों को नहीं मनाते। यह अच्छी बात नहीं है। 
          भारतीय संविधान को एक समतामूलक लोककल्याणकारी राष्ट्र की परिकल्पना के साथ निर्मित किया गया है। हमारा संविधान सभी को आश्वस्त करता है कि किसी के भी साथ उसकी जातीय -धार्मिक पृष्ठभूमि के आधार पर भेद-भाव नहीं किया जाएगा। इसके लिए नीति-निर्देशक तत्त्वों को भी संविधान में दर्ज कर दिया है। भारत की हर चुनी हुई सरकार का कर्तव्य है कि  वह नीति निर्देशों का पालन करे। 
        हम सभी के जीवन की सार्थकता या उपयोगिता अपने राष्ट्र के निर्माण एवं विकास में अपना योगदान देने में है। इसके लिए हमें अपना अधिक से अधिक बौद्धिक -मानसिक विकास करना होगा। हम वैज्ञानिक ,नेता ,शिक्षक ,व्यवसायी या उद्योगपति बनकर  भी राष्ट्र की सेवा कर सकते हैं। इसके लिए हमें अच्छी शिक्षा ग्रहण करनी होगी और कौशल अर्जित करना होगा। 
          इस अवसर पर हमें अपने पूर्वजों के उस संघर्ष को याद करना होगा ,जिसे उन्होंने देश को आजाद करने के लिए किया। उनके त्याग को और उनके अपमान को भी याद रखना होगा ; जिससे हम आजादी का मूल्य समझ सकें।  हमारे देश में एक बड़ी समस्या आज भी सीमा पर से की जाने वाली साजिशों की है।  कुछ विदेशी शक्तियां नहीं चाहतीं की भारत में शांति बनी रहे। हमें ऐसी साजिशों को विफल करना होगा। अंग्रेज जब भारत से जाने लगे तो उन्होंने इस दर से की इतना बड़ा देश भविष्य में विश्वशक्ति बना सकता है ,उसका विभाजन करा दिया। इससे दक्षिण एशिया का भारतीय भूभाग वैज्ञानिक भविष्य को भूलकर सांप्रदायिक हो गया।  इससे आज स्वयं पश्चिम के देश भी सुखी नहीं है। आतंकवाद जैसी समस्याएं पूरे विश्व को चिंतित किए हुए हैं। 
        अपने राष्ट्र और संविधान के प्रति सच्ची निष्ठा का एक बार हम पुनः सामूहिक संकल्प लेते हैं।

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