किताबें एक मनुष्य को
दूसरे मनुष्य के दिमाग के भीतर तक
ले जाती हैं
पहले के लोगों की तरह हम भी कह सकते
हैं इसे परकाया -प्रवेश !
किताबें कम समय में
किसी के द्वारा जीवन भर की गयी
यात्रा का पता दे देती हैं
ऐसे ही नहीं बनी हुई हैं वे
जीवन की सबसे जरुरी चिट्ठियां !
एक समान जिल्द के बावजूद
उनमें दर्ज हैं अलग-अलग आदतें और
रुचियाँ
स्वभाव तथा अंग-प्रत्यंग ....
इन्हें समान समझने की गलती न करें
इस दूकान में करीने से सजा कर रखे
गए हैं
इनको लिखने वाले लोगों के दिमाग ...
कुछ किताबों में दौड़ते पैर यात्राएं
और उनकी आत्मकथा है
तो कुछ में धड़कते दिल की दास्तान
कुछ में आँखों देखा हाल है तो
तो कुछ में है आत्मा बेहाल
कुछ ऐसी भी किताबें हैं फिसलन भरी
सीढ़ियों जैसी
जिनके पीछे है दुनिया-जंगल ...
"कभी-कभी ही कोई ग्राहक
मांगता है उस किताब को ...
लेकिन जब मांगता है
उसे नहीं न कहना पड़े
रखनी पड़ती है वह किताब ..".1
कुछ किताबें छपकर भी दम ताड देती
हैं
और कुछ किताबें छपती जाती हैं
बेहिसाब
कुछ किताबों का कोई नामलेवा भी नहीं
बचता
कुछ किताबों का रखता ही नहीं कोई
हिसाब ...
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