Wednesday, 7 June 2017

साम्प्रदायिकता

इतिहास का पिछला अनुभव तो यही बताता है कि नयी सभ्यता के अंकुर वहीँ से फूटे जहाँ सभ्यता नें मानव विवेक को जड़ीभूत नहीं किया था .इंगलैंड से नयी सभ्यता का आरम्भ तो कुछ ऐसा ही ऐतिहासिक अनुभव देता है .जैसे लिखे हुए कागज की तुलना में बिना लिखे हुए सादे कागज संभावना के रूप में अधिक आकर्षित करते हैं .जैसे लिखा हुआ कागज कुछ नया लिखने के प्रयोजन से बेकार हो जाता है ,वैसे ही हर रूढ़िवादी समुदाय मानवजाति के नए विकास की दृष्टि से |
अधिकांश पुरानी सभ्यताएँ लिखे हुए कागज की तरह हैं -संभव है कि उनका कुछ पाठ अब भी उपयोगी हो लेकिन वे आज की तुलना में कम वयस्क एवं अवैज्ञानिक मानव-प्रजाति की धारणाएँ हैं .इसीलिए आज पुराने रूप में हिन्दू या मुस्लमान होना एक अतीतजीवी एवं अयोग्य जनसंख्या का हिस्सा होना है . यह सच है कि पाकिस्तान के निर्माण के माध्यम से ब्रिटिश साम्राज्य नें दक्षिण एशिया के इस हिस्से को ऐसे दुष्चक्र में धकेल दिया है साम्प्रदायिकता के आधार पर विभाजित , व्यापक नरसंहारों की स्मृति लिए दक्षिण एशिया का यह भूभाग सैकड़ों वर्षों तक जलता रहेगा | इस दृष्टि से मैं असजग भारतीयों और पाकिस्तानियों को ऐतिहासिक मूर्ख के रूप में देखता हूँ .एक औपनिवेशिक सत्ता द्वारा जानबूझकर वैज्ञानिक चेतना वाले विकास से विपरीत दिशा में सम्प्रदयिकता की ओर भटकाए हुए लोग ....
अतीत के अव्याख्यायित-अपरीक्षित विश्वास में पड़े लोग अच्छा या बुरा वर्तमान रच रहे होते हैं ,जबकि अविश्वास में पड़े लोग मानव के भावी विवेक की संभावना के लिए संघर्ष कर रहे होते हैं .

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